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    हिन्दी और क्षेत्रीय भाषा का उपयोग

    Use of Hindi and regional languages

    भारत के संविधान के अनुच्छेद 348(1) में प्रावधान है कि उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी जब तक कि संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे ।

    अनुच्छेद 348(2) में उपबंध है कि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। राजभाषा अधिनियम, 1963 में इसी बात को दोहराया गया है और धारा 7 के तहत उपबंध किया गया है कि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा । इस संबंध में संसद द्वारा अभी तक कोई कानून नहीं बनाया गया है । अतः उच्चतम न्यायालय की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होती हैं ।

    भारत के 18वें विधि आयोग ने “भारत के उच्चतम न्यायालय में अनिवार्य भाषा के रूप में हिन्दी की शुरुआत करने की अवव्यवहार्यता” (2008) पर अपनी 216वीं रिपोर्ट में सभी हितधारकों के साथ विस्तृत विचार विमर्श करने के उपरांत, अन्य बातों के साथ-साथ सिफ़ारिश की गई है कि उच्चतम न्यायपालिका पर वर्तमान सामाजिक संदर्भ में किसी भी प्रकार का परिवर्तन, चाहे वह प्रेरक स्वरूप का ही क्यों न हो, नहीं थोपा जाना चाहिए ।

    मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के राज्यों के उच्च न्यायालयों में कार्यवाहियों के साथ-साथ निर्णयों, आदेशों या आदेशों में भी हिंदी के प्रयोग को प्राधिकृत किया गया है । भारत सरकार को मद्रास उच्च न्यायालय, गुजरात उच्च न्यायालय और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की कार्यवाही में क्रमशः तमिल, गुजराती और हिंदी के प्रयोग की अनुमति देने के लिए तमिलनाडु, गुजरात और छत्तीसगढ़ सरकार से प्रस्ताव प्राप्त हुए थे । इन प्रस्तावों पर 1965 में लिए गए संसदीय समिति के एक उस निर्णय के अनुसार भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की सलाह मांगी गई थी, जिसमें प्रावधान है कि किसी उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिन्दी या किसी भी क्षेत्रीय भाषा के उपयोग के किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की टिप्पणियाँ आवश्यक हैं । भारत के मुख्य न्यायमूर्ति ने अपने दिनांक 16.10.2012 के अ.शा. पत्र द्वारा सूचित किया कि पूर्ण न्यायालय ने उचित विचार विमर्श के उपरांत प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने का निर्णय लिया । सरकार ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का पालन किया है ।

    तमिलनाडु सरकार से प्राप्त अन्य अनुरोध के आधार पर सरकार ने भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से दिनांक 04.07.2014 के अ.शा. पत्र द्वारा उच्च न्यायालयों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग के लिए और अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए इस संबंध में पिछले निर्णयों की समीक्षा करने और भारत के उच्चतम न्यायालय की सहमति भेजने का अनुरोध किया है । माननीय भारत के मुख्य न्यायमूर्ति ने अपने दिनांक 18.01.2016 के अ.शा. पत्र द्वारा सूचित किया है कि पूर्ण न्यायालय ने विस्तृत विचार विमर्शों के उपरांत इन प्रस्तावों को निरनुमोदित किया है और उन संकल्पों को दोहराया है ।